The Definitive Guide to सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में रोचक तथ्य

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कर्ण धनुर विद्या का ज्ञान पाना चाहते थे जिसके लिए वे द्रोणाचार्य के पास गए लेकिन गुरु द्रोणाचार्य सिर्फ क्षत्रीय राजकुमारों को इसकी शिक्षा देते थे उन्होंने कर्ण को सूद्र पुत्र कहके बेइज्जत करके मना कर दिया, जिसके बाद कर्ण ने निश्चय किया कि वो इनसे भी अधिक ज्ञानी बनेगा जिसके लिए वो उनके ही गुरु शिव भक्त परशुरामजी के पास गए. परशुराम सिर्फ ब्राह्मण को शिक्षा देते थे, कही परशुराम मना ना कर दे ये सोच कर कर्ण ने उनको झूट बोल दिया कि वो ब्राह्मण है. परशुराम ने उन्हें बहुत गहन शिक्षा दी जिसके बाद वे कर्ण को अपने बराबर का ज्ञानी धनोदर बोलने लगे.

कोणार्क सूर्य मंदिर कहां स्थित है? इसे किसने बनवाया था?

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इस पर कृष्ण ने अर्जुन को कुछ नहीं बोला और दोनों ब्राह्मण भेष में पहले युद्धिष्ठिर के पास गये और बोले की मुझे चन्दन की लकडी खाना बनाने के लिए चाहिए

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महाभारत में अपनी वीरता के कारण जिस सम्मान से कर्ण का स्मरण होता है, उससे अधिक आदर उन्हें उनकी दानशीलता के कारण दिया जाता है. कर्ण का शुभ संकल्प था कि वह मध्याह्न में जब सूर्यदेव की आराधना करता है, उस समय उससे जो भी माँगा जाएगा, वह वचनबद्ध होकर उसको पूर्ण करेगा.

भगवान सूर्य के तेज से कर्ण का जन्म हुआ था.

जन्म विवरण दुर्वासा ॠषि के वरदान से कुन्ती ने सूर्य का आह्वान करके कौमार्य में ही कर्ण को पुत्र स्वरूप प्राप्त किया और लोक लाज भय से नदी में बहा दिया। हस्तिनापुर के सारथी अधिरथ और उसकी पत्नी राधा ने पाला। इसलिए कर्ण को राधेय भी कहते हैं।

अब सुदर बालक देखकर तनिक उल्लास के बाद लोक लाज के भय से कुंती चिंतित हो गई. अतः उसने उस बालक को एक सन्दुक में रख गंगा जी में बहा दिया.

दुर्योधन द्वारा कर्ण को अंग देश का राजा घोषित करने के बाद, कर्ण ने एक घोषणा की, की सुर्यदेव के पूजा के बाद जो भी व्यक्ति कुछ भी मांगेगा, उसे कभी भी इनकार नहीं करेगा और इसके साथ मांगने वाले कभी भी खाली हाथ वापस नहीं जाएगा

महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पूर्व, भीष्म ने, जो कौरव सेना के प्रधान सेनापति थे, कर्ण को अपने नेतृत्व में युद्धक्षेत्र में भागीदारी करने से मना कर दिया। यद्यपि दुर्योधन उनसे निवेदन करता है, लेकिन वे नहीं मानते। और फिर कर्ण दसवें दिन उनके घायल होने के have a peek at this web-site पश्चात ग्यारहवें दिन ही युद्धभूमि में आ पाता है। तेरहवे दिन का युद्ध[संपादित करें]

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