The 5-Second Trick For सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में रोचक तथ्य

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पर कर्ण इन सबके बाद भी पाण्डव पक्ष में युद्ध करने से मना कर देता है, क्योंकि वह अपने आप को दुर्योधन का ऋणी समझता था और उसे ये वचन दे चुका था कि वह मरते दम तक दुर्योधन के पक्ष में ही युद्ध करेगा। वह कृष्ण को यह भी कहता है कि जब तक वे पाण्डवों के पक्ष में हैं जो कि सत्य के पक्ष में हैं, तब तक उसकी हार भी निश्चित है। तब कृष्ण कुछ उदास हो जाते हैं, लेकिन कर्ण की निष्ठा और मित्रता की प्रशंसा करते हैं और उसका यह निर्णय स्वीकार करते हैं और उसे ये वचन देते हैं कि उसकी मृत्यु तक वह उसकी वास्तविक पहचान गुप्त रखेंगे.

यदुवंशी राजा शूरसेन की पोषित कन्या कुन्ती जब सयानी हुई तो पिता ने उसे घर आये हुये महात्माओं के सेवा में लगा दिया। पिता के अतिथिगृह में जितने भी साधु-महात्मा, ऋषि-मुनि आदि आते, कुन्ती उनकी सेवा मन लगा कर किया करती थी। एक बार वहाँ दुर्वासा ऋषि आ पहुँचे। कुन्ती ने उनकी भी मन लगा कर सेवा की। कुन्ती की सेवा से प्रसन्न हो कर दुर्वासा ऋषि ने कहा, 'पुत्री!

इसी कारण कर्ण को राधेय कहा जाता है. महाबलि कर्ण ने दुर्योधन से मित्रता का निर्वहन अपने प्राणों की अंतिम श्वास तक किया.

विध्यार्थी श्लोक मन्त्र - काक चेष्टा भावार्थः सहित

दानवीर कर्ण के अनेकों सन्तान थी, जिनके नाम वृषसेन , चित्रसेन , सत्यसेन , सुशेन , द्विपाल , शत्रुंजय , प्रसेन , वनसेन और वृषकेतु थे.

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कर्ण एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कर्ण (बहुविकल्पी)

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ज्योतिष शास्त्र में भी सूर्य को ग्रहों का राजा बताया गया है। ऐसा भी कहा गया है कि रविवार को सूर्य की पूजा से सभी इच्छाए पूर्ण होती हैं। इनकी पूजा अर्चना से स्वास्थ्य, ज्ञान, सुख, पद, सफलता, प्रसिद्धि व बुद्धि आदि की प्राप्ति होना निश्चित है। सूर्य को अर्क देना अत्यंत शुभ फल देना वाला होता हैं। प्रातः काल भोर में सूर्य की पहली किरण के सकारात्मक प्रभाव को हम सभी जानते हैं।

राजन इसका अर्थ हुआ कि हम खाली हाथ ही लौट जाए? किन्तु इससे आपकी कीर्ति धूमिल हो जाएगी. संसार आपकों धर्म विहीन राजा के रूप में याद रखेगा, यह कहते हुए वे लौटने लगे.

आन्ध्र की लोक कथाओं के अनुसार एक बार कर्ण कहीं जा रहा था, तब रास्ते में उसे एक कन्या मिली जो अपने घडे़ से घी के बिखर जाने के कारण रो रही थी। जब कर्ण ने उसके सन्त्रास का कारण जानना चाहा तो उसने बताया कि उसे भय है कि उसकी सौतेली माँ उसकी इस असावधानी पर रुष्ट होंगी। कृपालु कर्ण ने तब उससे कहा कि वह उसे नया घी लाकर देगा। तब कन्या ने आग्रह किया कि उसे वही मिट्टी में मिला हुआ घी ही चाहिए और उसने नया घी लेने से मना कर दिया। तब कन्या पर दया करते हुए कर्ण ने घी युक्त मिट्टी को अपनी मुठ्ठी में लिया और निचोड़ने लगा ताकि मिट्टी से घी निचुड़कर घड़े में गिर जाए। इस प्रक्रिया के दौरान उसने अपने हाथ से एक महिला की पीड़ायुक्त ध्वनि सुनी। जब उसने अपनी मुठ्ठी खोली तो धरती माता को पाया। पीड़ा से क्रोधित धरती माता ने कर्ण की आलोचना की और कहा कि उसने एक बच्ची के घी के लिए उन्हें इतनी पीड़ा दी। और तब धरती माता ने कर्ण को श्राप दिया कि एक दिन उसके जीवन के किसी निर्णायक युद्ध में वह भी उसके रथ के पहिए को वैसे ही पकड़ लेंगी जैसे उसने उन्हें अपनी मुठ्ठी में पकड़ा है, जिससे वह उस युद्ध में अपने शत्रु के सामने असुरक्षित हो जाएगा।

इसी प्रकार माता कुन्ती को भी दानवीर कर्ण द्वारा यह वचन दिया गया कि इस महायुद्ध में उनके पाँच पुत्र अवश्य जीवित रहेंगे और वह अर्जुन के अतिरिक्त और किसी पाण्डव का वध नहीं करेगा। और उसने वही किया , कर्ण ने अर्जुन के वध के लिए देवराज इंद्र से इंद्रास्त्र भी माँगा था। द्रौपदी स्वयंवर[संपादित करें]

कर्ण अंग देश के राजा थे, इस कारण उन्हें अंगराजके नाम से भी जाना जाता हैं. आज जिसे भागलपुर और मुंगर कहा जाता हैं, महाभारत काल में वह अंग राज्य हुआ करता था. कर्ण बहुत ही महान योध्दा थे, जिसकी वीरता का गुणगान स्वयं भगवान श्री कृष्ण और पितामह भीष्म ने कई बार किया. कर्ण ही इकलौते ऐसे योध्दा थे, जिनमे परम वीर पांडू पुत्र अर्जुन को हराने का पराक्रम था.

इस प्रकार कर्ण के विभिन्न click here कारणों से विभिन्न नाम थे.

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