5 Easy Facts About चमकौर का युद्ध Described
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चमकौर साहिब की ऐतिहासिक जंग की याद में गुरुद्वारा कतलगढ़ साहिब, गुरुद्वारा कच्ची गढ़ी साहिब, गुरुद्वारा दमदमा साहिब, गुरुद्वारा ताड़ी साहिब, गुरुद्वारा रणजीतगढ़ साहिब सुशोभित हैं। इस महान पावन शहीदी स्थान पर प्रत्येक वर्ष सिक्ख संगत जोड़ मेले के रूप में एकत्र होकर उन महान शहीदों को श्रद्धा और सत्कार भेंट करती है।
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नागा 'योद्धा' संन्यासी जिसने भारत पर कब्ज़ा करने में की थी अंग्रेज़ों की मदद
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आज ज़रूरत है ऐसी जंग और ऐसे महान योद्धाओं को याद करने की, जब मनुष्य चारों ओर से नफरत, घृणा और कुरीतियों से घिरा हुआ है। आज का हमलावर चाहे लाज़ो-लश्कर वाला घुड़सवार न हो, पर स्वाभिमान और धर्म की रक्षा का खतरा तो आज भी हर पल बना हुआ है। संत और सिपाही की जो कल्पना गुरु साहिब ने की, आज भी वह उतनी ही सार्थक और प्रासंगिक प्रतीत होती है। ज़रूरत है इन परिस्थितियों को अपने जीवन के नज़रिये में ढालने की। धर्म की परिभाषा केवल ग्रन्थ, शब्द या उपदेश मात्र तक ही सीमित नहीं परन्तु सही, सरल, निडर, निर्वैर जीवन जीने की कला को ही धर्म कहते हैं।
ज़फ़रनामा अर्थात 'विजय पत्र' गुरु गोविंद सिंह द्वारा मुग़ल शासक औरंगज़ेब को लिखा गया था। ज़फ़रनामा, दसम ग्रंथ का एक भाग है और इसकी भाषा फ़ारसी है। भारत के गौरवमयी इतिहास में दो पत्र विश्वविख्यात हुए। पहला पत्र छत्रपति शिवाजी द्वारा राजा जयसिंह को लिखा गया तथा दूसरा पत्र गुरु गोविन्द सिंह द्वारा शासक औरंगज़ेब को लिखा गया, जिसे ज़फ़रनामा अर्थात 'विजय पत्र' कहते हैं। नि:संदेह गुरु गोविंद सिंह का यह पत्र आध्यात्मिकता, कूटनीति तथा शौर्य की अद्भुत त्रिवेणी है। गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय प्रतीक थे। .
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यह गर्दन कट तो सकती है here मगर झुक नहीं सकती।
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